बारिश की मेमरी भी बड़ी अजीब होती
पत्तो को हरा कर देती है, इंसान को सुखा ।
खैर वो छोड़ो
खिड़की से बाहर हाथ निकालकर देखा है कभी,
वोही बारिश अपने पन का भी एहसास देती है ।
तुम्हे याद है 'सखी' वो बारिश का दिन जब हम दोनों हाथ में सैंडल लिए,
नंगे पांव एक अजनबी रस्ते पे पागलो जैसे घूम रहे थे ।
उस दिन मिटटी की खुशबु भी अजीब ही थी, जैसे किसीने नए सेंट की बॉटल खोली हो ।
वैसे तो एक अर्सा गुजर गया है इस बात को पर आज भी वो दिन याद से गया नहीं ।
वो एक दिन था, और आज एक दिन है
उस वक़्त हम साथ होने के सपने बुनते थे,
आज सपने सच हो के साथ है ।
#Gypsy
#सखी